महजबीं
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दिल में किना रखने वाले, तानाशाह दिमाग़ रखनेवाले, दिल तोड़ने वाले, बेमौत मारने वाले भी यह अहसास रखते हैं कि मन क्या होता है, और मन क्या चाहता है, मन की बात कैसे समझी जाती है, मन की बात सिर्फ़ सुनाई नहीं सुनी भी जाती है? तमाम जानदार चींज़े मन रखतीं हैं वो वाहिद एक शख़्स नहीं जो मन रखते हैं।
जनमत इकट्ठा करने के लिए कारोबारी और सियासी लोगों ने समय- समय पर तरह-तरह की टेकनीक इस्तेमाल की, संवेदनशील प्रभावित करने वाली भाषा का प्रयोग किया, यह कोई नई बात नहीं है यही होता आया है। अपने आप को सत्ता में बनाए रखने के लिए तरह-तरह के परोपेगेंडा का इस्तेमाल किया जाता रहा है, लेकिन अब " मन " का भी इस्तेमाल किया जाने लगा है।
मनुष्य को समाज में रहना होता है और समाज में रहने के लिए सामाजिक मूल्यों की जानकारी रखनी होती है उन पर चलना पड़ता है समाजिक व्यवहार के लिए विचारों के आदान-प्रदान के लिए शिक्षण- अधिगम प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है और समाज में ही रहने के लिए, भाषा को सीखना होता है मातृभाषा, माध्यमभाषा, व्यापार की अंतरराष्ट्रीय भाषा सभी सीखने की ज़रूरत होती है।
भाषा में पारंगत होने के लिए, बातचीत के लिए, अभिव्यक्ति के लिए, संवाद के लिए, संपर्क के लिए भाषायी कौशलों का ज्ञान होना ज़रूरी है, जैसे भाषण कौशल, वाचन कौशल, पाठन कौशल, श्रवण कौशल। वक्ता श्रोता के बीच तभी संवाद सफल होता है विचारों का आदान-प्रदान होता है जब वक्ता - श्रोता भाषायी कौशलों में निपुण हों, विशेषकर भाषण और श्रवण कौशल में।
बार- बार अपने ही मन की बात सुनाकर उन्होंने साबित किया कि वो सिर्फ़ पाठन कौशल और भाषण कौशल में पारंगत हैं, श्रवण कौशल का ज्ञान उन्हें है ही नहीं, जनता सिर्फ़ लिस्नर श्रोता बनकर रह गई है और वो स्पीकर वक्ता हैं। क्या यही है लोकतंत्र की परिभाषा की करोड़ों लोगों को सुनने मानने के लिए बाध्य कर दिया जाए और चंद लोग सुनाने के लिए? जनाब आप लोग भी कभी श्रोता की भूमिका निभाइये और करोड़ों लोगों के मन क्या चाहते हैं समझने की कोशिश करें तभी तो मन से मन की बात मुक्कमल होगी।
मेहजबीं
दिल्ली